मक्षीतीर्थ की जानकारी

मक्षी पार्श्वनाथ

उज्जैन नगर से पूर्व में ४० कि.मी. दूर मक्षी स्टेशन है। स्टेशन से आधे मील की दूरी पर मक्षी गाँव है। यहाँ मक्षीजी पार्श्वनाथजी का विशाल गगनचुम्बी भव्य जिनालय है। इस जिनालय का निर्माण विक्रम संवत् १४७२ (इस्वीसन् १४१६) में हुआ था। मूलनायक मक्षीजी पार्श्वनाथ की श्याम रंग की सवा दो हाथ बड़ी विशाल प्रतिमा पंद्रह सौ वर्ष से अधिक प्राचीन है। यह मूर्ति वालु (सेन्डस्टोन) से बनी है। मंदिर के नीचे तलघर से यह प्रतिमा मिली थी। मूल स्थान पर वर्तमान में एक चबूतरा है। मक्षीजी पार्श्वनाथ की प्रतिमा निकली तब हजारों लोग एकत्रित हुए थे। पश्चात् लाखों रुपये खर्च कर श्वेताम्बर जैन संघ ने भव्य मंदिर बनवाया है। गोलाकार आसन पर बिराजमान इस प्रतिमा के आस-पास चँवर हिलाने वाले इन्द्र व अन्य देव-देवियों की मूर्तियाँ हैं। मूर्ति पर कटिसूत्र, वस्त्रपट्ट तथा श्री वत्स उत्कीर्ण है। मूर्ति पर सर्प के सात फण फेले हुए हैं। फणों के आसपास दो हाथी भी हैं। मूर्ति के नीचे सर्प का चिह्न अंकित है। मूलनायक परमात्मा की यह प्रतिमा मूलत: भूरे रंग की थी, परन्तु बाद में लेप करने से श्याम रंग की दिखाई देती है। यह प्रतिमा अत्यंत मनोहर, आकर्षक और नयनाभिराम है। दर्शन करते ही भक्तजन भावविभोर हो उठते हैं। प्रभु के चरणों में बैठकर जप-तप स्तुति प्रार्थना करते हुए श्रद्धालु भक्त भिन्न भावालोक में पहुँच जाता है। मूलनायक भगवान के बायीं और बावीसवें तीर्थंकर नेमीनाथ की श्यामरंग की प्रतिमा है। जबकि दायीं ओर चिंतामणि पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण की मनोहर प्रतिमा है। इसके अलावा अन्य प्रतिमाएँ भी यहाँ स्थित हैं। मूलनायक भगवान के ठीक नीचे पार्श्वयक्ष की एक चमत्कारिक प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है, जिसके साथ चमत्कारिक घटना जुड़ी हुई है। सभामंडप में मणीभद्रवीर, चक्रेश्वरीदेवी, पद्मावतीदेवी, पार्श्वयक्ष वगैरह प्रतिमाएँ भी हैं। सभामंडप के मध्यद्वार पर पार्श्वनाथ भगवान की एक छोटी मूर्ति उत्कीर्ण है। मणीभद्रजी की मूर्ति के पास मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान के लेप से पूर्व और पश्चात् के चित्र रखे गये हैं। गर्भगृह में तथा मणीभद्रवीर और देवीपद्मावती के पास अखण्ड ज्योति सदैव जलती रहती है।

मुख्य मंदिर की प्रदक्षिणी-परिक्रमा में पहले बियालीस (४२) देवकूलिकाएँ थी। वर्तमान में छत्रीस (३६) देवकूलिकाएँ हैं। जिसमें भिन्न-भिन्न परमात्मा की प्रतिमाएँ बिराजमान है। मूलनायक सहित सभी प्रतिमाजी की प्रतिदिन अष्टप्रकारी पूजा आदि की जाती है। मंदिरों में बिराजमान मूर्तियों पर, प्राय: सभी पर १५४८ के शिलालेख हैं।

मुख्य जिनालय का पिचहत्तर फूट ऊँचा शिखर इस तीर्थ का मुख्य आकर्षण है, जो दो-तीन किलोमीटर दूर से दिखाई देता है और लोगों को अपनी और आकर्षित करता है। इस भव्य शिखर की स्थापना विक्रमसंवत् १९१३ (इस्वीसन् १८५७0 में उज्जैन निवासी श्रावकरत्न उदयचंदभाई ने तपागच्छीय मुनि कल्याणविजयजी के द्वारा की गई थी।

जिनालय के पास ही कार्यालय है। विक्रमसंवत् १९७७-७८ इस्वीसन् १९२१-२२ में इस तीर्थ की व्यवस्था सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी को सौंपी गई तब से तीर्थ का समस्त संचालन और व्यवस्था सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी की ओर से होता है। समीप में सुंदर विशाल श्वेतांबर जैन धर्मशाला है और मंदिर के पीछे सुंदर बगीचा है।

जैन-अजैन सभी प्रभुजी की पूजा करते हैं और मानते हैं। मालवा में यह तीर्थ बहुत प्रसिद्ध और महत्तवपूर्ण है।

मक्षीजी पार्श्वनाथजी की कुछ विशेषता एक प्राचीन स्तवन में मिलती है। जो निम्नप्रकार से है :

“जिनमंदिरथी जमणे देवरीयां छत्रीश

प्रभुना मंदिर आंगले चौमुख देवल एक

वळी चौमुखने आगलै रायण रूख उदार

तिहां पगलां परमेसतणा भेटी हरष अपार

रायणतल लगु देरी जीहां श्री जिनवर पास

जिनमंदिर जीमणइ त्रिहुं देवरीमा ठाम

श्वेतांबरी विवहारिहो दा. तेह श्रावक समकित धारी

केंइ हीन्दु तुरक हजारी आवइ तो प्रभु जात्रा तुमारी

इहपाससामी मुगतीगामी, देसमालव मंडणो

मग सीयगामइ अयल ठामइ पाप ताप विहंडणो

(रचना नरसिंहदास सं. १७७८ जैन सत्य प्रकाश अं.२, व.प.)”

सालगिरह

तीर्थ की सालगिरह वैशाख सुदी ८ के दिन मुख्य जिनालय पर ध्वजा चढ़ाकर मनाया जाता है।

प्रसंग

पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म कल्याणक पौष वदी – १०

पार्श्वनाथ प्ऱभु का दीक्षा कल्याणक पौष वदी -११

इन दिनों में अट्ठम तप की आराधना की जाती है तथा दसमी तथा एकादशी के दिन स्वामीवात्सल्य भी किया जाता है। पौष-१0 के दिन प्रतिवर्ष शान्तिस्नात्र रखा जाता है तथा जन्मकल्याणक के इस दिन नवीन ध्वजा चढाई जाती है जो वैशाख सुदी ८ के दिन पुन: बदली जाती है।

समय पत्रक

जिनालय खोलने का समय सुबह ५-३० बजे
प्रक्षालन, आरती, मुकुट पूजा बोली का समय सुबह ९-०० बजे
प्रक्षालन करने का समय सुबह ९-३० बजे
स्नात्र पूजा का समय सुबह १०-३० बजे
सायं की आरती का समय सायं ८-०० बजे
जिनालय मांगलिक करने का समय रात्रि ८-३० बजे

धर्मशाला तथा भोजनशाला

तीर्थ में रहने हेतु सुविधाएँ : तीर्थ में जिनालय के आगे खुले चौक में २ धर्मशालाएँ स्थित है, जिसमें १७ कमरे तथा २ हॉल हैं। इसके अलावा बड़े बगीचे की भूमि पर नूतन धर्मशाला पाँच वर्ष पूर्व बनाई गई है जिसमें १० कमरे तथा २ हॉल अभी बनाये गये हैं। २७ कमरे तथा ५ हॉल बनाने की योजना अभी शेष है।

तीर्थ में भोजनशाला की सुविधा है। जिसमें ५० व्यक्तियों हेतु टेबल-कुर्सी पर तथा ८० व्यक्तियों हेतु नीचे बैठकर भोजन कर सकने की व्यवस्था के लिए एक हॉल में भोजनशाला स्थित है।

योजनाएँ

मक्षीजी तीर्थ में दान हेतु विविध योजनाएँ

सर्व साधारण रु. ५०००/-
जिनालय साधारण रु. ३०००/-
आंगी रु. ५०००/-
अखंड दीपक रु. ११००/-
उबाला हुआ पानी रु. ११११/-
नवकारशी रु. ३०००/-
भोजनशाला रु. ५०००/-
केसर-चंदन रु. ५०००/-

रकम चेक से अथवा नकद दी जा सकती है।
तीर्थ की पेढी अथवा मुख्य कार्यालय में संपर्क करने हेतु प्रार्थना है।

समीपस्थ तीर्थ स्थल

विशेष जानकारी
तीर्थ में उपाश्रय की सुविधा नहीं है। साधु-साध्वीजी जिनालय समीपस्थ धर्मशाला में ठहरते हैं।

मक्षीजी तीर्थ के आसपास स्थित तीर्थों में
मक्षीजी से देवास ३४ कि.मी.
इन्दौर ७० कि.मी.
उज्जैन ४० कि.मी.
मातमोर शीवपुर १०० कि.मी
नागेश्वर पार्श्वनाथजी १२० कि.मी.
भक्तामर तीर्थ धार १४० कि.मी
अमीझरा पार्श्वनाथ
भोपावर १८० कि.मी
मोहनखेडा २०० कि.मी.
लक्ष्मणीजी २५० कि.मी.
अहमदाबाद से मक्षीजी ५०० कि.मी दूर स्थित है।

फोटो गैलरी

संपर्क

सेठ आनंदजी कल्याणजी
मैक्सीजी, पिन-465 106,
ज़िला साजापुर (मप्र)

फोन नंबर। 07363 233037