आणंदजी कल्याणजी पेढी (पेढी परिचय)

सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी अर्थात् भारतवर्ष के सभी श्वेताम्बर जैन संघों का प्रतिनिधित्व करने वाली ज्वाजल्यमान संस्था! यह नाम किसी व्यक्ति विशेष के नाम से प्रचलित नहीं हुआ है अपितु श्री संघ का नाम और काम सदैव आनंदमय एवं कल्याणकारी हो तथा श्री संघ में सदैव आनंद व कल्याण व्याप्त रहे इस शुभभावना से आनंद एवं कल्याण इन दो शब्दों को जोड़कर यह नाम अस्तित्व में आया है। यह नाम कब प्रचलन में आया? किसने रखा? इत्यादि प्रश्नों के उत्तरों को जानने पर पता चलता है कि – पालीताणा में वि.सं. १७८७ की पुस्तक में सर्वप्रथम सेठ आणंदजी कल्याणजी का नाम मिलता है। वि.सं. १८१५ में तो “आणंदजी कल्याणजी की पेढी” ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

वर्षों पूर्व भारत में विशेषत: गुजरात में कारखाने, पेढी, खाता ये शब्द जैन तीर्थों के संचालन के साथ जुडे हुए थे। ये शब्द किसी व्यावसायिक पेढी-फर्म या औद्योगिक कारखाने-फेक्टरी के संदर्भ में प्रयुक्त नहीं हुए थे-मात्र संचालन कार्यप्रणाली के सूचक थे, जो संस्था के नाम से जुडे हुए थे। तब ट्रस्टों की व्यवस्था प्रचलित नहीं थी। आज भी कुछ स्थानों पर ये नाम यथावत् हैं।

वि.सं. १७८७ से १८८० (ई.स. १७३१-१८२४) तक यह पेढी मुख्यत: शत्रुंजय तीर्थ संबंधित व्यवस्था ही संभालती थी। उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार वि.सं. १७८७ (ई.स.१७३१) से कार्यरत थी अर्थात् २८० से अधिक वर्षों से यह पेढी कार्यरत है। प्रारम्भ में श्री शत्रुंजय महातीर्थ संबंधी व्यवस्था संचालन तथा धीरे धीरे आवश्यकता अनुसार अन्य तीर्थ तथा जिनालयों का सुचारु संचालन संभालने वाली इस पेढी का सर्वप्रथम नियमविधान वि.सं. १९३६ भाद्रपद वदी १ ई.स. १९-०६-१८८० के दिन२३ गाँवों के ३२ प्रतिनिधियों तथा अन्य कुल १०३ महानुभावों की उपस्थिति में अहमदाबाद के नगरसेठ रावबहादुर प्रेमाभाई हेमाभाई की अध्यक्षता में बना।

वि.सं.१९६८ ई.स.१९१२ के २८-२९-३० दिसम्बर को आयोजित त्रि-दिवसीय सभा में समग्र भारतवर्ष के ९० जैन संघों के ११० प्रतिनिधियों की सहमति के साथ यह पेढी श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ की प्रतिनिधि संस्था बनी।

पेढी आरंभ हुई तब से पेढी का नाम व काम धीरे धीरे विस्तृत होने लगा था और आज तो अखील भारतीय जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ में अत्यंत लोकप्रिय हो चला है। श्री संघ के हितार्थ कोई भी धार्मिक प्रश्न उपस्थित होने पर श्री संघ का ध्यान सर्वप्रथम सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी की ओर ही जाता है और अधिकांशत: पेढी के मार्गदर्शन से ही उससे संबंधित कार्यवाही की जाती है। पेढी ने ढाई सौ वर्ष से भी अधिक समय से तीर्थरक्षा, प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार आदि कार्य संपूर्णत: समर्पितभाव से तथा दीर्घदृष्टि से करते हुए यशस्वी स्थान प्राप्त किया है। दीर्घकाल से अनुभवसमृद्ध यह संस्था चतुर्विधसंघ की सेवा में निरंतर समर्पित है।

यह पेढी मुगलकाल से ही अहमदाबाद के प्रख्यात झवेरी शांतिदास शेषकरण सेठ के वंशज के द्वारा नगरसेठ परिवार के रूप में संघ, समाज व ज्ञाति में शिर्षस्थ स्थान रखते हुए, तथा अहमदाबाद शहर के श्रीसंघ के अग्रगण्य श्रावकों के द्वारा ही संचालित होती रही है। इसके ऐतिहासिक साक्ष्य आज भी प्राप्त होते हैं। वर्तमान में भी पेढी का मुख्य कार्यालय अहमदाबाद में ही है। पेढी के परिवन कर्ता अहमदाबाद जैन संघ के माननीय श्रेष्ठीगण है। तथा हर पंद्रह दिनों में नियमितरूप से बैठक में मंत्रणा करते हैं जिसमें व्यवस्थापकिय निर्णय तथा संचालन की समग्र प्रक्रिया की समुचित समीक्षा की जाती है। इसके अलावा स्थानिक तथा अन्य प्रादेशिक प्रतिनिधियों की सभाएँ भी समयांतर पर आयोजित की जाती हैं। इस समय देश भर से लगभग ११० प्रतिनिधि इस पेढी के साथ जुडे हुए हैं।

आणंदजी कल्याणजी पेढी प्रारम्भ में मात्र श्री शत्रुंजय महातीर्थ के संरक्षण, विकास और तीर्थ संबंधित सभी प्रश्नों के साथ सलग्न थी। पेढी के प्रशंसनीय कार्य को देखते हुए वि.सं. १९५३, (ई.स. १८९७) से पेढी को अलग अलग समय पर अन्य तीर्थों के संचालन का कार्य भी सौंपा गया। जिसकी जानकारी इसप्रकार है।

इस पेढी का कार्यक्षेत्र मुख्यत: जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के पवित्र तीर्थ स्थान तथा जिनमंदिर, जिनबिंब वगैरह की सुरक्षा करना है तथा उससे संबंधित अधिकारों को बनाए रखना है।

तीर्थ पेढी हस्तगत संचानल आने का वर्ष वि.सं. ई.सन्
राणकपुर (राजस्थान) १९५३ १८९७
गिरनार (गुजरात) १९६३ १९०७
तारंगा (गुजरात) १९७७ १९२१
मक्षी (मध्यप्रदेश) १९७७ १९२१
कुंभारीयाजी (गुजरात) १९७७ १९२१
शेरीसा (गुजरात) १९८४ १९२८
वामज (गुजरात) १९९६ १९४०
मुछाला महावीर (राजस्थान) २०२० १९६४

पेढी के अन्य कार्यक्षेत्र

जैन शासन के सातों क्षेत्रों के योगक्षेम हेतु निरंतर जाग्रत और प्रयत्नशील रहना ही पेढी का मुख्य उद्देश्य है। श्री संघ की धर्मभावना स्थिर रखने व वृद्धि हेतु जहाँ नूतन जिनमंदिर बनाने की आवश्यकता होने पर पेढी की ओर से आवश्यक मार्गदर्शन तथा सहयोग दिया जाता है।

कल्याणकभूमि के, तीर्थों के जीर्णोद्धार में भी पेढी का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है।

पेढी की अन्य महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियों में तीर्थों की सुरक्षा, श्रुतसुरक्षा, जीवदया पांजरापोल, साधु-साध्वीजी भगवंतो की वैयावच्य, साधर्मिकों की भक्ति वगैरह का समावेश होता है।

पेढी ने अहमदाबाद के जिनालय की सुरक्षा हेतु से गोदरेज कंपनी के पास से ताले बनवाकर अहमदाबाद के १५० से अधिक जिनालयों को इसका लाभ दिया। अब भारतवर्ष के सभी संघों के लिए भी इस व्यवस्था को क्रमश: उपलब्ध करवाने का आयोजन किया गया है।

पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों के लिए निर्दोष आहार-पानी के लिए लकड़ी से बने पात्र तथा उन्हें रंगने के लिए आवश्यक साधनों की व्यवस्था भी पेढी ने की है, और सभी पूज्यों को पात्र आदि के अर्पण द्वारा पेढी वैयावच्य का लाभ लेती है।

पूज्य साधु-साध्वीजी के कालधर्म प्राप्त करने पर उनकी पुण्यकाया के अग्निसंस्कार हेतु चंदन की लकड़ी अर्पित करने में भी पेढी सक्रिय लाभ लेती है। इसके लिए पालीताणा तथा अहमदाबाद के ‘पालखी मंडल’ के साथ सहयोग कर पूर्ण व्यवस्था की जाती है।

साधर्मिक भक्ति के क्षेत्र में अपूर्ण आजीविका रखने वाले साधर्मिक भाई-बहिनों के लिए पेढी स्वयं भी अपनी निश्चित् मर्यादा में कार्य करती है। इसके अलावा इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को उदारतापूर्वक आर्थिक सहयोग देकर साधर्मिक सहयोग की प्रवृत्ति को बल देती है।

भारतवर्ष के श्वेताम्बर परम्परा के तीर्थ-संघ- एवं जिनालयों के विकास में विविध प्रकार से सहयोगी बनने की पेढी की परम्परा रही है।

श्री संघ के अन्य अग्रगण्य महानुभाव और अहमदाबाद पेढी के संचालक समय समय पर पूज्य गुरु भगवंतो के साथ व्यक्तिगत संपर्क कर तथा पत्र व्यवहार द्वारा संघ को और संघ की संस्थाओं से संबंधित समस्याओं के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। विचार आदान-प्रदान करते हैं। पेढी को उसके प्रारम्भ में भी उस समय के महान आचार्य भगवंत शासन सम्राट पूज्य नेमिसूरिश्वरजी महाराज का मार्गदर्शन मिलता रहा। तारंगा, शेरिसा, राणकपुर, शत्रुंजय, गिरनार, वामज, मक्षीजी, मुछाला महावीर वगैरह अनेक तीर्थों की व्यवस्था उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से ही पेढी ने संभाली है। इसके लिए ७ मई १९१४ को पेढी के उस समय के प्रमुख श्रेष्ठी श्री कस्तूरभाई लालभाई ने पूज्य नेमिसूरिश्वरजी महाराज को लिखा पत्र हमें बहुत कुछ बताता है। वर्तमान में भी पेढी को सभी आचार्य भगवंत पदस्थ मुनिभगवंत, साध्वीजी भगवंतों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है। पेढी अपनी परंपरा और प्रणालिका की मर्यादा में रहकर चतुर्विध संघ की सेवा में कार्यरत है।

वर्तमान में पेढी के प्रमुख और अन्य ७ ट्रस्टीगण द्वारा पेढी का समग्र संचालन सुचारुरूप से किया जाता है।

पेढ़ी के प्रमुख, एवं उनका कार्यकाल