श्रुत आनंद ट्रस्ट अर्थात् आणंदजी कल्याणजी पेढी का जंगम श्रुततीर्थ।

जैन धर्म की परम्परा के सातों क्षेत्र में आणंदजी कल्याणजी पेढी सक्रिय रुचि दिखाई है और समस्त प्रकार से सहयोगी तथा सहभागी बनने हेतु कार्य करती है। सात क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है श्रुत – ज्ञान….! वैसे तो पेढी वि.सं. १९५२ अर्थात् ई.सन् १८९६ में जैन कन्याशाला में सहायता देकर तथा ई.सन् १८९६ से व्यावहारिक तथा धार्मिक शिक्षा लेने वाले जैन छात्र-छात्राओं को शिष्यवृत्ति-स्कोलरशीप देने की परंपरा का आरंभ किया व ई.सन् १९११ से पालीताणा में साधु-साध्वजियों के अध्ययन हेतु पंडित-शास्त्री की व्यवस्था करना आदि के रूप में एक या कई अन्य प्रकार से श्रुत तथा श्रुतसेवा के क्षेत्र में कार्यरत है, जिसके अनेक उदाहरण पेढी के इतिहास में संग्रहीत हैं। श्री संघ में होने वाली श्रुत सुरक्षा, संवर्धन की प्रवृत्तियों हेतु भी पेढी ने इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को समय समय पर आर्थिक सहयोग देकर श्रुतोपासना के अनेक क्षेत्रों में लाभ लिया है।

पेढी के तत्कालीन प्रमुख श्री संघ के माननीय अग्रगण्य श्री श्रेणिकभाई कस्तूरभाई ने अन्य ट्रस्टियों के साथ गहन चर्चा कर पूज्य गुरु भगवंतों की प्रेरणा, मार्गदर्शन और आशीर्वाद के साथ वि.सं. २००० में श्रुत आनंद ट्रस्ट की स्थापनी की, उसके संचालन हेतु पेढी ने अपने मुख्य कार्यालय के पीछे में स्थित अपना एक भव्य भवन प्रदान किया। उसमें आवश्यक परिवर्तन करके अध्ययन के प्रचार-प्रसार की प्रवृत्तियाँ प्रारंभ की। पेढी के वर्तमान प्रमुख सेठ श्री संवेगभाई के सक्रिय मार्गदर्शन के अंतर्गत इस ट्रस्ट में निम्नोक्त प्रवृत्तियाँ चल रही हैं।

अध्ययन-अध्यापन

पूज्य साधु-साध्वजी भगवंतों के साथ साथ श्री संघ के श्रावक-श्राविका वर्ग के ज्ञानोपासना में सहयोगी बनने हेतु विशिष्ट प्रतिभा संपन्न पंडितों की व्यवस्था कर श्रुत अध्ययन की कक्षा प्रारम्भ की। आरंभ में दार्शनिक अध्ययन हेतु प्रकांड पंडित श्री कल्याण शास्त्री के अध्यापन में अनेक पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों ने अध्ययन किया। संस्कृत, प्राकृत भाषा व्याकरण, प्रकरण ग्रंथ, कर्मग्रंथ, वगैरह के गहन अभ्यासुओं को अन्य पंडितवर्य्यों की सेवाएं प्राप्त हुई। आज भी अध्ययन की यह प्रवृत्ति अनवरत चल रही है।

ज्ञान भंडार

अध्ययन की प्रवृत्ति के साथ ज्ञानभंडार की प्रवृत्ति का भी विकास किया गया था। प्रारम्भ में कुछ ग्रंथों का संग्रह था, परन्तु धीरे धीरे ग्रंथ भंडार का विस्तार होने लगा। आज संस्था के पास २०००० से अधिक प्रकाशित पुस्तक तथा प्रतों का संग्रह है। इस भंडार में संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के पुस्तकों का संग्रह है। इस संग्रह का उपयोग पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंत तथा जिज्ञासु श्रावक-श्राविका आदि कर रहे हैं। पूज्य आचार्यदेवश्री प्रद्युम्नसूरिजी महाराज साहब द्वारा पाँच हजार से अधिक प्रकाशित पुस्तकों-ग्रंथों का संग्रह भी श्रुत आनंद ट्रस्ट को समर्पित किया गया है। इसप्रकार संस्था का ज्ञानभंडार दिन-प्रतिदिन समृद्ध होता जा रहा है। समय समय पर योग्य और उपयोगी नवीन पुस्तके खरीदकर भी भंडार को समृद्ध किया जाता है।

हस्तलिखित ग्रंथ

संस्था के पास ४००० से अधिक हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है। इन हस्तलिखित ग्रंथों की सुंदर व समुचित सुरक्षा द्वारा देखरेख की जाती है। यहाँ संग्रहित ग्रंथों का उपयोग साधु-साध्वीजी भगवंत तथा विद्वान कर रहे हैं। ये ग्रंथ सरलता से उपलब्ध हों तथा सुरक्षित रहें इस हेतु सभी ग्रंथों का आधुनिक पद्धति अंतर्गत स्केनिंग किया गया है, जिससे विद्वानों को आवश्यक हस्तप्रत की छायाप्रति यथाशीघ्र उपलब्ध हो सके। पूज्य जंबूविजयजी महाराज साहब द्वारा तैयार किये गये जैसलमेर, पाटण के दुर्लभ हस्तप्रतों की झेरोक्ष-छायाप्रति का संग्रह भी संस्था में उपलब्ध है। पुस्तकालय को विकसित करने हेतु स्केनींग की योजना की गई है। इसके द्वारा ग्रंथ भंडार में अन्य भंडारों की हस्तप्रतों की स्केन कॉपी भी उपलब्ध करवाई जायेगी।

प्रकाशन

जैनदर्शन के दुर्लभ और अलभ्य ग्रंथ प्रकाशित करने का कार्य भी संस्था द्वारा चल रहा है। श्री सिद्धर्षिगणी विरचित अत्यंत विस्तृत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ उपमितिभवप्रपंचा कथा है, उसका संक्षिप्त संस्करण पूज्य आचार्यश्री देवेन्द्रसूरिजी ने किया था। उसका गुजराती अनुवाद श्रुत आनंद ट्रस्ट द्वारा तीन भागों में प्रकाशित किया गया है। भविष्य में अन्य ग्रंथ प्रकाशित करने की योजना है।

यह संस्था पेढी का ही भाग है और संपूर्णतया पेढी के साथ जुड़ी हुई है। पेढी के प्रयत्नों से विशिष्ट दान देनेवाले परिवार के अनुमोदनार्थ संस्था के भवन का नाम सुश्राविका सुलोचाबेन नरोत्तमभाई लालभाई ज्ञानमंदिर रखा गया है। पेढी द्वारा प्रस्तावित और प्रस्थापित इस संस्था को पंडितश्री जितेन्द्रभाई बी. शाह का मार्गदर्शन मिलता रहता है।