शत्रुंजय गिरिराज पर मनाये जाने वाले महोत्सव
श्री शत्रुजंय तीर्थ पालीताणा में प्रतिवर्ष लगभग ६ लाख जितने जैन एवं अन्य यात्रीगण यात्रा करने आते हैं। प्रतिवर्ष निम्नोक्त प्रसंग-उत्सवों का आयोजन होता है।
बड़ी यात्रा के दिन
(१)कार्तिक शुक्लपक्ष -१५ (२) चैत्र शुक्लपक्ष -१५ (३) आषाढ़ शुक्लपक्ष -१४
इन दिनों में २५ से ५० हजार जितने यात्रीगण पधारते हैं।
उत्सव
(१)फाल्गुन शुक्लपक्ष – १३ श्री शत्रुंजय तीर्थ-सिद्धाचलजी की छ: कोस की यात्रा
इस दिन पर लगभग एक लाख से भी अधिक यात्रीगण इस तीर्थ में आते हैं। छ: कोस की यात्रा का आरंभ श्री शत्रुंजय तीर्थ की तलहटी से प्रारम्भ होकर गिरिराज पर श्री आदीश्वर दादा की बड़ी टूंक में दर्शन कर वहाँ से श्री शत्रुंजय तीर्थ की प्रदक्षिणा कर भाड़वा के पर्वत की यात्रा कर घेटीपाग (घेटीगाँव) होकर आदिपुर गाँव जहाँ पर श्री आदीश्वर दादा की चरणपादुकाओं की देरी है वहाँ पूरी होती है। यात्रा पूरी होने वाले स्थल पर शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी की ओर से प्रत्येकवर्ष बनाये जान वाले मण्डप में पेढी की ओर से तथा भिन्न-भिन्न गाँव-नगरों के जैनसंघों की ओर से दही-थेपले-बूँदी-गाँठीयाँ-मैसुर-दूध-शर्बत आदि निशुल्क देकर भक्ति की जाती है।
(२)चैत्र कृष्णपक्ष ८ (गुजराती फाल्गुन कृष्णपक्ष ८)
आज के दिन आदीश्वर भगवान का जन्म तथा दीक्षा, दो कल्याणक का दिन होने के कारण, पवित्र शत्रुंजय गिरिराज पर आदीश्वर दादा तथा अन्य जिनबिम्बों पर अठारह अभिषेक की विधि होती है। विशाल संख्या में श्रद्धावान भक्त इस प्रसंग पर उपस्थित होकर लाभ लेते हैं। प्रभु के दीक्षा तप के प्रतिकरूप में अनकों पूज्य साधु-साध्वीजी महाराज, हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ वर्षीतप की आराधना का मंगल प्रारम्भ छठ (निरंतर दो उपवास) का पच्चक्खाण लेकर करते हैं।
(३)फाल्गुन कृष्णपक्ष -८
इस दिन श्री शत्रुंजय तीर्थ पर आदीश्वर दादा तथा अन्य जिन प्रतिमाओं पर अठारह अभिषेक की विधि होती है।
(४)वैशाख शुक्लपक्ष ३ (अक्षय तृतीया)
इस पवित्र दिन पर वर्षीतप के तपस्वी लोग पारणा करने हेतु पालीताणा में अपने परिजनों के साथ आते हैं। वर्षीतप की तपश्चर्या में एक दिन निराहार उपवास और एक दिन बियासणा (दो समय भोजन) इसप्रकार पूरे वर्ष तप करना होता है। इस दिन तपस्वीजन श्री शत्रुंजय तीर्थ पर जाकर आदीश्वर दादा की इक्षुरस (गन्ने का रस) से प्रक्षालपूजा का लाभ लेकर पालीताणा तलहटी स्थित पारणा भवन में पारणा करते हैं। इस दिन लगभग १लाख जितने यात्रीगण पालीताणा आते हैं। पारणो की व्यवस्था तलहटी स्थित पारणा भवन में शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी द्वारा की जाती है।
गिरनार के मुख्य प्रसंग
गिरनारजी | तलहटी | गाँव जिनालय | |
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मूलनायक प्रभु की वर्षगाँठ (सालगिरह) | वैशाख सुदी-१५ | वैशाख वदी-६ | महा सुदी-५ |
चरण पादुका | वैशाख सुदी-१२ | महा सुदी-१० | |
ध्वजा बदलने का दिन | कार्तिक सुदी-१५ | कार्तिक सुदी-१५ | |
वैशाख सुदी-१५ | भाद्रपद सुदी-९ | ||
जय तलहटी चरण पादुका देरी | कार्तिक सुदी-१५ |
राणकपुर तीर्थ के प्रसंग
राणकपुर तीर्थ में प्रतिवर्ष दो मेले आयोजित होते हैं। इसमें फाल्गुन वदी दसवीँ अर्थात् राजस्थान के चैत्र महीने की दसवीँ तथा आश्विन शुक्ल त्रयोदशी के दिन लगने वाले मेलों में हजारों यात्रीगण एकत्रित होते हैं।
मुछाला महावीर के प्रसंग
मूलनायक भगवान का प्रतिष्ठा दिन | वैशाख सुदी -८ |
श्री महावीरस्वामी जन्म कल्याणक उत्सव | चैत्र सुदी -१३ |
तारंगाजी के प्रसंग
मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान का सालगिरह दिन | आश्विन सुदी – १० (दशहरा) |
तीर्थ का विशिष्ट पर्व | आश्विन सुदी – १०, (दशहरा) ध्वजारोहण दिन |
अजितनाथ भगवान के कल्याणक का वर्णन | |
च्यवन कल्याणक | वैशाख सुदी-१३, रोहिणी नक्षत्र, अयोध्या |
जन्म कल्याणक | महा सुदी-८, रोहिणी नक्षत्र, अयोध्या |
दीक्षा कल्याणक | महा सुदी-९, रोहिणी नक्षत्र, अयोध्या |
केवलज्ञान कल्याणक | पौष सुदी-५, मृगशीर्ष नक्षत्र, अयोध्या |
निर्वाण कल्याणक | चैत्र सुदी-५, मृगशीर्ष नक्षत्र, अयोध्या |
कुम्भारियाजी के प्रसंग
मूलनायक नेमिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा सालगिरह | महा सुदी – ५ |
कल्याणक-च्यवन कल्याणक | आश्विन वदी – १२ |
जन्म कल्याणक | श्रावण सुदी – ५ |
दीक्षा कल्याणक | श्रावण सुदी – ६ |
केवलज्ञान कल्याणक | भाद्रपद वदी – ०)) |
निर्वाण कल्याणक | आषाढ़ सुदी – ६ |
शेरीसा तीर्थ के प्रसंग
मूलनायक प्रभुजी का प्रतिष्ठा का दिन | वैशाख सुदी-१० |
जन्म कल्याणक दिन | पौष दसम। |
मक्षीजी तीर्थ के प्रसंग
पार्श्वनाथ प्रभु का जन्म कल्याणक पौष वदी – १०
पार्श्वनाथ प्रभु का दीक्षा कल्याणक पौष वदी -११
इन दिनों में अट्ठम तप की आराधना की जाती है तथा दसमी तथा एकादशी के दिन स्वामीवात्सल्य भी किया जाता है। पौष-१0 के दिन प्रतिवर्ष शान्तिस्नात्र रखा जाता है तथा जन्मकल्याणक के इस दिन नवीन ध्वजा चढाई जाती है जो वैशाख सुदी ८ के दिन पुन: बदली जाती है।