शेरीसा तीर्थ की जानकारी

राजनगर-अहमदाबाद शहर के समीप यह सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थित है। शेरीसा तीर्थ अहमदाबाद से लगभग २५ कि.मी. की दूरी पर है। अहमदाबाद से वडनगर होकर कलोल के रास्ते जाने पर, कलोल से पहले ७ कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। विशाल परिसर में भव्य जिनालय देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है, ऐसा यह तीर्थ है।

“ए नवण पाणी विवर जाणी, खाल गयो तव विसरी । अंतर एवडो सेरी सांकडी, नयरी कहती शेरीसा-कडी”

इस पद्य में कडी के पास स्थित शेरीसा की ध्वनि सूचित होती है। जिस नगर की संकरी गली में यह जिनालय था, उसमें भगवान का अभिषेक करने पर उस संकरी गली में पानी भर जाता था इसलिए लोग उस स्थान को ‘शेरिसा’ कहने लगे। वर्षों पहले समतल मैदान पर कुछ खड्डे और एक और नवीन जिन प्रासाद के अलावा कुछ देखने को नहीं मिलता था।

वही कवि इस स्थान को तेरहवीं शताब्दी से पूर्व के प्राचीन नगर का वर्णन करते हुए कहता है।

“ए नगर मोटु, एक खोटुं, नहीं जिन प्रासाद ए”

इस संबंध में संवत् -१३८९ में रचित “विविधतीर्थ कल्प” में शेरिसा में जिनप्रतिमा कब आई और कब मंदिर का निर्माण हुआ उसका आलेखन है। उसका सारांश यह है कि, नवांगीवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि शाखा के श्री देवेन्द्रसूरिजी जब शेरिसा पधारे तब उन्होंने एक पहाडी से निकाली गई शिला से सोपारक के अंध शिल्पी-सलाट से एक दिव्य मूर्ति की निर्माण करवाया। एक खान से दूसरी अन्य चौवीस प्रतिमाएँ मिली थी और श्री देवेन्द्रसूरिजी इस नगर में मंदिर बनवाने के लिए अयोध्या से चार बड़ी प्रतिमाएँ ला रहे थे तब उनमें से एक प्रतिमा धारासेनक (कदाचित् मालवा का ‘धार’ हो) गाँव में रखी और तीन प्रतिमाओं को शेरिसा में बनवाये गए भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित किया। एक चौथी मूर्ति गूर्जरनरेश कुमारपाल ने बनवायी थी। श्री जिनप्रभसूरिजी (संवत्-१३८९ के आसपास) प्रत्यक्ष देखे हुए वृत्तांत का वर्णन करते हुए कहते हैं कि “ये सभी प्रतिमाएँ शेरिसा गाँव के जिनमंदिर में आज भी संघ द्वारा पूजी जाती हैं।’

संवत् १३९३ में श्री कक्कसूरि द्वारा रचित नाभिनन्दन जिनोद्धार प्रबंध में लिखा है कि, नागेन्द्र गच्छ के श्री देवेन्द्रसूरिजी ने शेरिसातीर्थ की स्थापना की थी। इससे ज्ञात होता है कि लगभग बारहवीं शताब्दी में इस तीर्थ की स्थापना हो चुकी थी, ऐसा कहना ऐतिहासिक दृष्टि से सही है, इसलिए उपर्युक्त श्री जिनप्रभसूरिजी ने चौदहवीं शताब्दी में देखे गये इस तीर्थ का वर्णन किया है।

श्री जिनप्रभसूरि द्वारा रचित एक “तीर्थयात्रा स्तोत्र” में शेरिसा की मूर्तियों के संदर्भ में इसप्रकार का उल्लेख है। इन सभी प्रतिमाओं में मूलनायक की प्रतिमा के विषय में यह कहा गया है कि, “लाख लोक देखे, सहु पेखे, नाम लोडण थापना।।”

प्रतिमा को हिलती-डुलती देखकर लोगों ने उसका नाम ‘लोडण पार्श्वनाथ’ रखा था। दूसरे मतानुसार उस मूर्ति का एक पैर अलग दिखाई देने के कारण ऐसा नाम रखा गया है। जबकि तीसरे अन्य मतानुसार यह भी कहा जाता है कि, बालु से बनायी गई यह प्रतिमा लोहे जैसी कठोर बन गई इसलिए यह लोढण पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुई है। इन सभी मतों पर आज के समय में किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं किया जा सकता।

लगभग चौदहवीं शताब्दी में हुए श्री जिनतिलकसूरि द्वारा रचित ‘तीर्थमाला’ में मूलनायक की मूर्ति का वर्णन करते हुए लिखा है कि,

“शेरीसे पासे छे उड्डकाय।”

अर्थात् – शेरिसा में श्री पार्श्वनाथ की मूर्ति बहुत ऊँची और भव्य है।

कविवर लावण्यसमय के समय में अर्थात् १५६२ में यहाँ जिनमंदिर विद्यमान था इस संदर्भ में कवि स्वयं ही प्रत्यक्ष शेरिसा तीर्थ की बात कहता है।

“पोस कल्याणक दसम दीहाड ए, महियल महिमा पास देखाड ए.

देखाड ए प्रभु पास महिमा संघ आवे उमटयो, ध्वज पूज मंगल आरती तेणें पाप पूरवनां घटयां

संवत् पन्नर बासट्ठि प्रासाद शेरिसा तणो, लावण्यसमें इम आदि बोलें, नमो नमो त्रिभुवन धणी।”

अर्थात् लगभग सोलहवीं शताब्दी तक यह मंदिर विद्यमान था। उसके पश्चात् युद्ध के किसी प्रसंग के समय श्रावकों ने उन सभी मूर्तियों को जमीन में छिपा दिया होगा, और मंदिर पर विनाश के बादल छाये होंगे। शेरिसा के मंदिर की संवत् १४२० के लेख वाली पद्मावती की मूर्ति नरोडा गाँव में विद्यमान है, जो संवत् १४२० के पश्चात् हुए विप्लव के समय वहाँ ले जायी गई होगी। सौभाग्य से कुछ छुपायी हुई मूर्तियाँ वगैरह यहाँ से मिली हैं।

आज जो नवीन मंदिर यहाँ स्थित है उसके सामने के मैदान में प्राचीन जैन मंदिर खंडहर रूप में पड़ा था। मंदिर का अधिकांशत: भाग तो धराशायी हो गया था। मात्र दीवार का कुछ भाग खड़ा था, उसमें पत्थर के ढेर पड़े थे, उनके साथ मूर्तियाँ भी दबी हुई पड़ी थीं। इसके बारे में संवत् १९५५ में जैनों का ध्यान आकर्षित हुआ। उसमें से मर्ति निकालकर एक रबारी का घर खरीदकर उसमें वे सभी मूर्तियाँ रखी गई। उन मूर्तियों में एक खंडित मूर्ति, जो ४ फूट चौड़ी, पौने चार फूट ऊँची और सर्पफण सहित ५ फूट ऊँची थी, श्यामवर्ण की दो बड़ी कायोत्सर्ग मूर्ति, जो २ फूट चौड़ी और साड़े छ: से सात फूट ऊँची थी, अंबिका देवी की १ मनोहर मूर्ति थी- इन पाँच मूर्तियों में से जो बहुत विशिष्ट पत्थर से बनी थी, तथा श्वेत संगमरमर पत्थर से बनी आदीश्वर भगवान की खंडित मूर्ति-१ इसप्रकार ६ मूर्तियाँ मिली थी।

इस खण्डहर में नक्काशीयुक्त पत्थर, स्तम्भ, कलश वगैरह निकला है, जिसे एक ओर रखा गया है। तथा, पुन: खोदने पर जो मिला है उसमें पत्थर की १५-१६ मूर्तियाँ, संगमरमर की खण्डित २ मूर्तियाँ तथा संगमरमर की बड़ी मानवाकृति कायोत्सर्ग प्रतिमा, जिसमें दोनों ओर २४ जिन प्रतिमाएँ उकेरी गयी है और उन कायोत्सर्ग प्रतिमा के नीचे लेख है किन्तु वह बिलकुर घिस गया है, जो बारहवीँ-तेरहवीं शताब्दी का है ऐसा प्रतीत होता है।

इसके अलावा सफेद संगमरमर के परिकर की गादी के दो टुकड़े मिले हैं। उनके आगे का तीसरा टुकड़ा नहीं मिला है परन्तु उन दो टुकडों से इसप्रकार का लेख पढ़ने में आता है।

‘महामंत्री श्री वस्तुपाल-तेजपाल ने अपने भाई मालदेव और उनके पुत्र पुनसिंह के कल्याण के लिए शेरिसा महातीर्थ के श्री पार्श्वनाथ चैत्य में श्री नेमिनाथ भगवान का बिम्ब स्थापित कर प्रतिष्ठित किया व उसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छ के श्री विजयसेनसूरि ने की थी।’ यह संवत् १२८५ में होनी चाहिये। क्योंकि लेख में मात्र (५) का अंक उपस्थित है।

इस लेख में शेरिसा को ‘महातीर्थ’ कहा गया है। और वस्तुपाल व तेजपाल जैसे लोगों ने यहाँ मूर्ति स्थापित की है तो उस तीर्थभूमि का गौरव उस समय कितना होगा यह तो मात्र ग्रंथों के त्रुटक-त्रुटक वर्णन से केवल अनुमान लगाया जा सकता है।

उपर्युक्त मूर्तियों के अलावा पुरानी धर्मशाला के पास स्थित एक खड्डे से जो सर्प फणयुक्त श्री पार्श्वनाथ भगवान की विशाल मूर्ति निकली थी लोग वर्षों तक उसे ‘योद्धा’ वीर के रूप में पूजते थे और मान्यता वगैरह रखते थे। श्री आदीश्वर भगवान की कोहनी के नीचे आधार होने के कारण कुछ लोग उसे संप्रति के समय की प्रतिमा भी कहते हैं।

उपर्युक्त वर्णन, यहाँ के विशाल प्राचीन मंदिर तथा उसकी तीर्थ महिमा के बारे में बताते हैं।

शासनसम्राट श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज साहब के सदुपदेश से शेरीसातीर्थ के जीर्णोद्धार के कार्य में व तीर्थ के शिखरबद्ध जिनालय के निर्माण में स्व. सेठश्री साराभाई डाह्याभाई ने उस समय में तीन लाख दस हजार रुपये का सद् व्यय किया था। सेठ श्री साराभाई ही इस तीर्थ के अंतिम जीर्णोद्धार के मुख्य सूत्रधार थे। वर्षों तक उन्होंने इस तीर्थ की तन-मन-धन से सेवा की थी।

वि.सं.१९८४ (इस्वीसन् १९२८) के वर्ष में अषाढ़ सुदी १५ मंगल के दिन सेठ श्री साराभाई डाह्याभाई ने अखिल भारतवर्ष के जैनों की प्रतिनिधिरूप सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी को इस तीर्थ का संचालन कार्य सौंपा।

भूमि से मिलने वाली इन मूर्तियों में से पाँच मूर्तियाँ पर सेठ जमनाभाई भगुभाई ने मोती का लेप करवाया था और संवत् १९८८ (इस्वीसन् १९३२) महासुदी ६ के दिन उन मूर्तियों की मंदिर में प्रवेश प्रतिष्ठा की गई थी। इस जिनालय के तैयार होने के बाद वि.सं. २००२ (इस्वीसन् १९४६) में वैशाख सुदी १० के दिन परमपूज्य शासनसम्राट आचार्य महाराज श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी महाराज आदि की पवित्र निश्रा में उल्लासपूर्वक इस प्राचीन से नवीन बने जिनालय की प्रतिष्ठा की गई थी।

वर्तमान में इस तीर्थ में नवीन धर्मशालाएँ, उपाश्रय, ब्लोक, हॉल वगैरह बनने पर आने वाले संघ तथा यात्रियों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। उपधानतप आराधना, नवपद ओली आराधना, ज्ञान-ध्यान के शिबिर वगैरह के लिए अति सानुकूल वातावरण है। यह तीर्थ शान्ति का अनुपम पुण्यधाम है।

सालगिरह

मूलनायक भगवान की जानकारी (सालगिरह)

मूलनायक श्री शेरीसा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिष्ठा की वर्षगाँठ वैशाख सुदी १- के दिन मनाई जाती

प्रसंग

मूलनायक प्रभुजी का प्रतिष्ठा का दिन वैशाख सुदी-१०
जन्म कल्याणक दिन पौष दसम।

समय पत्रक

शेरीसा पार्श्वनाथ भगवान श्री लोढणपार्श्वनाथ तथा केसरियाजी आदीश्वरभगवान आसपास के भगवान
जिनालय खोलने का समय सुबह ५-३० बजे सुबह ५-३० बजे सुबह ५-३० बजे
वाक्षेप पूजा का समय ९-०० तक ७-०० तक ६-३० तक
प्रक्षाल पूजा का समय ९-३० तक ७-३० तक ७-०० तक
पूजा का समय ४-०० तक ४-०० तक ४-०० तक
आंगी का समय ४-०० तक
सायं की भावना का समय ७-०० बजे ७-०० बजे ७-०० बजे
सायं आरती का समय ७-३० बजे ७-३० बजे ७-३० बजे
मांगलिक का समय ८-४५ बजे ८-४५ बजे ८-४५ बजे

धर्मशाला तथा भोजनशाला

तीर्थ में पेढी की ओर से भाताखाता का शुभारंभ किया गया है।

योजनाएँ

स्थायी तिथियाँ

श्री सर्वसाधारण  ५,०००/-

श्री जिनालय साधारण     ३,०००/-

श्री आंगी                        ५,०००/-

श्री अखंडदीप                 १,१००/-

श्री उबाला हुआ पानी      १,१११/-

श्री केसर-चंदन               १,१११/-

श्री स्थायी भाता तिथि (एक तिथि में मात्र एक ही नाम लिखा जायेगा।)

*रु. ५१,०००/- : बड़ी तिथियों में जैसा कि महीने की सुद १, पूर्णिमा, दसमी, दादा के कल्याणक के दिन वगैरह।

*रु. २१,०००/- : छोटे दिनों में।

भाता योजना में इसके अलावा कोई भी यात्री रु. १,०००/- या २,०००/- देकर एक दिन भाता करवा सकता है।

समीपस्थ तीर्थ स्थल

विशेष जानकारी

उपाश्रय साधु महाराज साहब के लिए तथा साध्वीजी महाराज साहब के ठहरने के लिए उपाश्रय की सुविधा है।
एअरपोर्ट समीपस्थ एअरपोर्ट अहमदाबाद है।
अहमदाबाद से शेरीसा तीर्थ का अंतर ४० कि.मी.
पानसर १४ कि.मी. फोन नं. ०२७६४-२८८२४०/२८८४०२
वामज १० कि.मी.   फोन नं. ०२७६४-२५०१२६
पंचकैवल्यधाम (ओगणज) १२ कि.मी.   फोन नं. ०२७१७-२४४१७२
भोयणी ४२ कि.मी.   फोन नं. ०२७१५-२५०२०४
रांतेज ६० कि.मी.   फोन नं. ०२७३४-२६७३२०
उघरोज ४० कि.मी.   फोन नं. ०२७१५-२४११६४
जय त्रिभुवन तीर्थ-नंदासण २५ कि.मी.   फोन नं. ०२७६४-२७३२६५

फोटो गैलरी

संपर्क

सेठ आनंदजी कल्याणजी
मू. पो. शेरिसा, पिन- 382721
जिला गांधीनगर

फोन नंबर। 02764 250126
मोबाइल 7069004617