मूछाला महावीर तीर्थ
राजस्थान की भूमि वीरों की भूमि के रूप में सुप्रसिद्ध है, इसीप्रकार भक्ति और स्थापत्य की दृष्टि से भी सुविख्यात है। इस भूमि पर विद्यमान अनेक अद्भुत जिनालय और भव्य महल उसका साक्ष्य देता है। आस्था, भक्ति और समर्पण के परिपक्वता के रूप में निर्मित हुए अद्वितीय जिनालय इस भूमि पर अलंकार रूप में शोभित हैं। भक्ति से अद्भुत प्रसंग आकार लेते हैं। आस्था और भक्ति के संगम स्वरूप घाणेराव समीपस्थ मूछाला महावीर नामक एक तीर्थ सुप्रसिद्ध है।
यह तीर्थ घाणेराव के बिलकुल समीप लगभग ५ कि.मी. की दूरी पर और सादडी से १० कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह तीर्थ प्राचीन है और उसके चारों ओर अनेक आश्चर्यजनक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। चौवीस जिनालय युक्त जिनमंदिर में मूलनायक चरम शासननायक परमात्मा महावीर स्वामी बिराजमान है। परिधि में स्थित चौवीस देरियों में कुल मिलकर ५४ जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई हैं। इस जिनमंदिर में कोई प्राचीन लेख उपलब्ध नहीं है। तथापि मूर्ति की प्राचीनता प्रत्यक्ष अनुभव होती है। मूर्ति पर कोई लेख प्राप्त नहीं होता तथापि यहाँ की लोकोक्ति अनुसार यह प्रतिमा नंदिवर्धन राजा ने प्रतिष्ठित की थी। सुंदर परिकरयुक्त सफेद रंग क संगमरमर पत्थर से बनी इस प्रतिमा की प्राचीनता स्पष्ट दिखाई देती है। यह प्रतिमा अनेक स्थानों पर खण्डित होने के कारण वर्षों पूर्व दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठित करने हेतु लायी गयी थी। परन्तु मूलनायक भगवान की प्रतिमा को आसन से उठाया ही नहीं जा सका इसलिए अंत में नवीन प्रतिमा को समीप की देरी में प्रतिष्ठित की गई थी।
घाणेराव आदि विस्तार में इस प्रतिमा का चमत्कारिक प्रभाव फैला हुआ है। जैसे प्रभाव केशरियाजी तीर्थ या शंखेश्वर तीर्थ का है, वैसा ही प्रभाव इस तीर्थ का भी है। इस तीर्थ के अधिष्ठायक देव प्रकट प्रभावी है और लोगों की कामना पूर्ति करते हैं। ऐसी आस्था यहाँ के लोगों के मन में है। यहाँ कार्तिक वदी प्रतिपदा तथा चैत्र सुदी त्रयोदशी के दिन मेला लगता है। इस समय हजारों लोग यहां परमात्मा के दर्शन करने आते हैं। मूलनायक महावीरस्वामी भगवान मूछाला के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। परमात्मा की प्रतिमा मूछाला महावीर के रूप में प्रसिद्ध हुई उसके पीछे एक दंतकथा प्रचलित है।
एक बार कुंभलगढ़ के महाराज शिकार करने निकले थे और घुमते-घुमते यहाँ पहुँच गये। वे धर्मशाला के चबूतरे पर विश्राम कर रहे थे तब पुजारी ने तिलक करने हेतु केसर दिया। केसर की कटोरी में बाल दिखाई दिया, बाल देखते ही अधिकारियों ने पुजारी को उलाहना दिया और उपहास करते हुए कहा कि ‘पुजारीजी! आपके भगवान के दाढ़ी मूछ है क्या? दाढ़ी मूछ नहीं है तो केसर की कटोरी में बाल कैसे आया? ‘पुजारी से ये उपहास सहन नहीं हुआ उसने प्रत्युत्तर में कहा कि ‘हा महाराज! मेरे भगवान के दाढ़ी मूछ हैं और वे अनेक रूप धारण करने में समर्थ हैं।’ राजा इस उत्तर को सुनकर हँस पड़े और कहा कि , ‘मैं इस समय तो शिकार पर निकला हूँ। तीन दिन बाद वापिस आऊँगा तब तुम्हारे दाढ़ी-मूछ वाले भगवान के दर्शन करवाना।’ अत: पुजारी ने भक्तिपूर्वक परमात्मा के पास आकर विनती करी कि ‘हे भगवन! राजा के वापिस लौटने पर आप दाढी-मूछ सहित ही दर्शन देना। आप जबतक आपके ऐसे स्वरूप के दर्शन नहीं देंगे तबतक मैं अन्नजल ग्रहण नहीं करूँगा।’ इसप्रकार मन ही मन संकप्ल लेकर पुजारी वहीं पर परमात्मा की भक्ति करते हुए बैठा रहा। अट्ठम तप हो गया। तीसरे दिन सायं को अधिष्ठायक देव प्रसन्न हुए और कहा कि ‘राजा को कल दर्शन करवाना, प्रभु दाढ़ी-मूछ सहित ही दर्शन देंगे।’ पुजारी के मन को संतोष मिला। चौथे दिन सुबह राजा पधारे। पुजारी राजा को श्रद्धापूर्वक परमात्मा के पास ले आया। उन्हें परमात्मा के दाढ़ी-मूछ सहित दर्शन हुए। मूर्ति को दाढ़ी-मूछ सहित देखकर राजा को आश्चर्य हुआ। राजा ने विचार किया कि, लगता है इसके पीछे अवश्य पुजारी की कोई करतूत है। अत: उसने परमात्मा की प्रतिमा से मूछ का बाल खेंचा। बाल खेंचते ही उस स्थान से दूध की धारा बहने लगी। परमात्मा की ऐसी अद्भुत प्रतिमा राजा ने देखी तब से यह तीर्थ मूछाला महावीर के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
इस तीर्थ के आसपास जंगल है। मनोहर प्राकृतिक वातावरण है। इस तीर्थ का समस्त संचालन घाणेराव संघ के द्वारा संघ के अग्रगण्य श्री जावंतराजजी चावड़ा आदि ने पेढ़ी को सौंपने के लिए १९६२ में पेढ़ी के प्रमुख सेठश्री कस्तूरभाई लालभाई के साथ राणकपुर तीर्थ में विचार विमर्श कर संचालन संभालने हेतु विनती की थी। पेढ़ी ने दि. ०४-०५-१९६४ के दिन से इस तीर्थ का संचालनकार्य हाथ में लिया। तब से पेढ़ी द्वारा तीर्थ के जिनालय, धर्मशाला आदि की सुचारु व्यवस्था की जाती है। संप्रति पेढ़ी द्वारा जिनालय का जीर्णोद्धार चल रहा है। इसप्रकार यह तीर्थ अनेक भक्तों की आस्था का केन्द्र बिन्दु है।
विशेष जानकारी
उपाश्रय
साधु महाराज के लिए पहली मंजिल पर तथा साध्वीजी के लिए ग्राउन्ड फ्लोर पर ठहरने की सुविधा है।
वर्षगाँठ
मूलनायक भगवान की प्रतिष्ठा का दिन वैशाख सुदी-८ वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाता है।
प्रसंग
मूलनायक भगवान का प्रतिष्ठा दिन | वैशाख सुदी -८ |
श्री महावीरस्वामी जन्म कल्याणक उत्सव | चैत्र सुदी -१३ |
समय पत्रक
जिनालय का समय पत्रक
जिनालय खोलने का समय | ग्रीष्मऋतु में सुबह ६-०० बजे/ शीतऋतु में ६-३० बजे |
प्रक्षालन का समय | ग्रीष्मऋतु में सुबह ९-०० बजे/ शीतऋतु में ९-३० बजे |
आरती और मंगलदीप का समय (सुबह) | सुबह ११-०० बजे |
आंगी चढ़ाने का समय | सायं ४-०० बजे |
संध्या भावना का समय | यात्री की भावना का हो तो भावना रखी जाती है, उसकी तैयारी संघ या यात्री की ओर से की जाती है। |
आरती और मंगलदीप का समय (संध्या) | सायं ७-०० बजे |
जिनालय मांगलिक करने का समय | ग्रीष्मऋतु में रात्रि ८-३० बजे/ शीतऋतु में ८-०० बजे |
घी बोली की दर | रु. ५/- एक मण के |
धर्मशाला तथा भोजनशाला
तीर्थ की योजनाएँ
स्थायी तिथियों की योजना
श्री सर्वसाधारण स्थायी तिथि रु. ५,०००/-
श्री जिनालय साधारण स्थायी तिथि रु.३,०००/-
श्री जिनालय आंगी स्थायी तिथि रु. ५,०००/-
श्री अखण्डदीप स्थायी तिथि रु. १,१००/-
श्री उबाले हुए पानी की स्थायी तिथि रु. १,१११/-
समीपस्थ स्थल
समीपस्थ स्थल | |
एरपोर्ट | समीपस्थ एरपोर्ट उदयपुर – ११२ कि.मी. |
शहर | समीपस्थ शहर घाणेराव ५ कि.मी. |
रेल्वे स्टेशन | समीपस्थ रेल्वे-स्टेशन ५० कि.मी. |
अहमदाबाद से मूछाला महावीर की दूरी | हिम्मतनगर, शामलाजी, केशरियाजी, उदयपुर, राणकपुर होकर ४०० कि.मी. सड़क मार्ग से |
समीपस्थ तीर्थ | राणकपुर से -२१ कि.मी., सादडी – १५ कि.मी., घाणेराव (कीर्तिस्तंभ) – ५ कि.मी., वरकाणा- ३५ कि.मी. नाडोल – १६ कि.मी. |
मूछाला महावीर पहुँचने के लिए उदयपुर से बस तथा टेक्सी और सादडी तथा घाणेराव से जीप, रिक्शा आदी मिलते हैं। |
घाणेराव श्री संघ संचालित भोजनशाला है। जिसमें सुबह नवकारशी तथा दोपहर व सायंकाल में भोजन दिया जाता है।
फोटा गॅलेरी
संपर्क
सेठ आनंदजी कल्याणजी |
मुच्छला महावीरजी तीर्थ, पो. घाणेराव- 306 704 (राजस्थान) |
कार्यालय फोन नं. 8104787314 |
मैनेजर (मोबाइल) -9928020698 |